इस मर्ज़ का मैं क्या करूँ (is marz ka mai kyaa karuun)



ला-दवा है ज़िंदगी 
इस मर्ज़ का मैं क्या करूँ
नज़र जो आऊँ कभी तुम्हें 
तो बस ये इल्तजा करूँ  
शामिल हूँ तेरे वक़्त में 
इक पल मुझे गुज़ार दो 
है उम्र भर का दर्द ये 
इक सांस में रिहा करो 


La-dawaa hai zindagii.. is marz ka mai kya karuun...
nazar jo aaun kabhii tumhe..to bas ye iltijaa karuun..
shaamil hoon tere waqt mein..ik pal mujhe guzaar do..
hai umr bhar ka dard ye..ik saans mein rihaa karo

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