वही पुरानी किताब (Wohi puraanii kitaab)
वही पुरानी किताब.. वही मैं
बैठा हूँ उसी पेड़ की छाँव में
वही गुलिस्तान.. टहलते लोग.. खेलते बच्चे
ढलता सूरज फिर आसमान में नयी तस्वीरें बना रहा है
वो नहीं आएंगे आज भी
जानता हूँ मगर
ये मंज़र.. ये इंतज़ार..
यही तो है..
और क्या है ज़िंदगी में..
(Original poetry by @kaunquest)
wohi puraanii kitaab, wohi mai,
baiTaa hoon usii peD ki chaav mein
wohi gulistaan, Tehalte log, khelte bache, Dtaltaa suuraj phir aasmaan mein nayii tasveeren banaa rahaa hai, woh nahin aayenge aaj bhi...jaantaa hoon magar, ye manzar, ye intezaar... yahi to hai,
aur kyaa hai zindagii mein...
Comments
Srividya, thanks!!